चिकित्सकों को भगवान का दूसरा रुप माना जाता है. वे बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज करके लोगों को ठीक करते हैं. हर रोग के लिए अलग-अलग चिकित्सक होते हैं. कोई एमबीबीएस होता है तो कोई सर्जन, सबके काम अलग-अलग हैं. लेकिन क्या आपने किसी ऐसे डॉक्टर के बारे में सुना है, जो लोगों का इलाज अजीब तरीके से करता हो? वो भी ऐसा खौफनाक तरीका, जिससे सैकड़ों लोगों की मौत हो जाए? हजारों लोग अपंग हो जाएं? शायद नहीं सुना होगा, लेकिन बता दें कि अमेरिका के न्यू जर्सी में एक ऐसा ही डॉक्टर हुआ करता था, जिसका नाम हेनरी कॉटन था. न्यू जर्सी के एक बड़े पागलखाने ट्रेंटन स्टेट अस्पताल में डॉ. हेनरी कॉटन चिकित्सा निदेशक और अधीक्षक हुआ करते थे.
महज 30 वर्ष की कम उम्र में चिकित्सा निदेशक के रूप में पद स्वीकारने के लिए अमेरिका लौटने से पहले डॉ कॉटन ने उस समय के दो प्रसिद्ध हस्तियों एमिल क्रेपेलिन (Emil Kraepelin) और एलोइस अल्जाइमर (Alois alzheimer) के अधिन यूरोप में मनोचिकित्सा का अध्ययन किया था. उस दौरान जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. एडोल्फ मेयर (Adolf Meyer) भी थे. तब ये सभी व्यक्ति मनोचिकित्सा के क्षेत्र में काफी बड़े नाम हुआ करते थे, विशेष रूप से एडोल्फ मेयर, जो यह पहचानने वाले पहले लोगों में से एक थे कि मनोरोग संबंधी समस्याएं मस्तिष्क की बजाय मानव व्यक्तित्व की समस्याएं हैं. मेयर ने इस विचार को भी बरकरार रखा कि मानसिक बीमारी जीवाणु संक्रमण के कारण भी हो सकती है. हेनरी कॉटन, मेयर के इस विचार से प्रभावित थे कि रोगाणु सभी मानसिक बीमारियों की जड़ हैं. ऐसे में साल 1913 में जब रिपोर्ट्स ने पुष्टि की कि सिफलिस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया ने रोगियों के मस्तिष्क घावों को जन्म दिया. इस घटना के बाद हेनरी कॉटन को साहस मिला. ऐसे में कुछ ही समय बाद उन्होंने ट्रेंटन स्टेट अस्पताल में कैदियों पर अपने सिद्धांतों को लागू करना शुरू कर दिया. उस समय तक पेनिसिलिन का आविष्कार नहीं हुआ था और संक्रमण को खत्म करने का एकमात्र तरीका संक्रमित अंग को शल्य चिकित्सा द्वारा निकालना था.
ऐसे में डॉ कॉटन ने इलाज के नाम पर सबसे पहले लोगों के दांतों को निकालना शुरू किया और धीरे-धीरे अन्य अंगों को भी काटकर हटाने लगे. उन्होंने तर्क दिया कि मुंह सबसे स्पष्ट स्थान है, जहां रोगाणु छिपे हुए होते हैं. ऐसे में उन्होंने सबसे पहले संक्रमित, फिर छेद वाले दांतों को निकालना शुरू कर दिया. यहां तक कि संक्रमण के खतरे से बचने के लिए रोगनिरोधी उपाय के रूप में उन्होंने अपने साथ ही अपनी पत्नी और दोनों बेटों के दांत भी निकलवा लिए थे. जब दांत निकालने से उनके मरीज़ ठीक नहीं हुए, तो उन्होंने अपने प्रयास दोगुना कर दिए और इस प्रक्रिया में उनके टॉन्सिल और साइनस हटा दिए. डॉ कॉटन इतने पर ही नहीं रुके. जो लोग ठीक नहीं हो रहे थे, उनके अलग-अलग ऑर्गन्स को वो निकालने लगे. कॉटन द्वारा ऑपरेशन किए गए प्रत्येक तीन रोगियों में से एक की मौत हो गई. लेकिन कॉटन ने इन मौतों के पीछे खुद को जिम्मेदार नहीं माना, बल्कि उन्होंने लॉन्ग टर्म मनोविकृति के कारण रोगियों की खराब शारीरिक स्थिति को जिम्मेदार ठहराया. वहीं, जीवित बचे लोगों में इस सनकी डॉक्टर ने बीमारियों से 85 प्रतिशत तक सफलता पाने का दावा किया, जिससे साइंटिस्ट फेडरेशन में भी उसकी वाहवाही हुई. इसके बाद तो मानसिक बीमारी से पीड़ित कई लोग इलाज के लिए ट्रेंटन आए. इनमें से कई लोगों को घसीटते हुए और मारते हुए सर्जरी के लिए ले जाया गया. यहां तक कभी-कभी परिवारों को भी सूचित नहीं किया जाता था.
ऐसे खुली पोल
डॉ. एडोल्फ मेयर ने जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन के एक स्टाफ फीलिस ग्रीनक्रे (Phyllis Greenacre) को ट्रेंटन में कॉटन के काम का मूल्यांकन करने के लिए एक स्टडी करने का निर्देश दिया. लेकिन जैसे ही ग्रीनक्रे ने ट्रेंटन के अंदर कदम रखा, उसे अजीब अहसास हुआ. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि हॉस्पिटल से गंदी स्मेल आ रही थी और डॉ कॉटन का व्यवहार भी विचित्र था. इतना ही नहीं, ग्रीनक्रे ज्यादातर मानसिक रोगियों की शक्ल और व्यवहार से परेशान थे, क्योंकि उन सभी के चेहरे धंसे हुए थे और आवाज नहीं निकल रही थी, क्योंकि उनमें से किसी के भी मुंह में दांत नहीं थे. ग्रीनक्रे ने पाया कि अस्पताल के रिकॉर्ड अव्यवस्थित थे और कॉटन द्वारा गलत डेटा भी दिया जा रहा था. ग्रीनक्रे ने पाया कि वास्तव में डॉ. कॉटन के तरीके से बहुत कम मरीज़ ठीक हुए, और जो ठीक हुए उनका सर्जरी से कोई संबंध नहीं था. इतना ही नहीं कॉटन द्वारा स्वीकार किए गए मरीजों की तुलना में लगभग आधे मरीज मर गए थे. जब एडॉल्फ मेयर ने ग्रीनक्रे की रिपोर्ट पढ़ी तो उन्हें लगा कि डॉ. कॉटन को बदनाम करने की ये कोई साजिश है. उन्होंने कॉटन के करियर को बचाने के लिए इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया. रिटायर होने के बाद कॉटन ने खुद का निजी अस्पताल खोला और चिकित्सा के खौफनाक तरीके को जारी रखा. 8 मई 1933 को जब अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हुई, तब तक उन्होंने सैकड़ों लोगों को मार डाला था.
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FIRST PUBLISHED : March 22, 2024, 13:22 IST